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धर्मक्षेत्र के स्‍थापना दिवस पर हुआ पत्रिका विस्‍तार

गहमर वेलफेयर सोसाइटी द्वारा सनातन धर्म की जानकारियों को जन जन तक पहुँचाने, गंगा एवं सहायक नदियों की  सफाई में जन जागरूकता लाने एवं कई अन्‍य उद्वेश्‍यों से स्‍थापित ऑनलाइन पत्रिका धर्मक्षेत्र की स्‍थापना 11 अक्‍टूबर 2021 को की गई थी। आज तीसरे स्‍थापना दिवस पर पत्रिका का विस्‍तार करते हुए गहमर वेलफेयर सोसाइटी के प्रवन्‍धक अखंड प्रताप सिंह ने श्रीमती गीता सिंह, रायगढ़, छत्‍तीसगढ़ को पत्रिका के संपादक एवं बिहार के औरंगाबाद निवासी सतेन्‍द्र कुमार पाठक काे सहायक संपादक पद पर अवैत‍निक रूप में नियुक्‍त किया।

*मानो या न मानो यह सच है* *धर्मक्षेत्र पत्रिका के शुभारंभ की कहानी जो लिखी गई शुभारंभ के दिन*

*साक्षात मिला देवी का आशीर्वाद*

मैं जो लिखने जा रहा हूँ उसका एक एक अक्षर उसी प्रकार है जिस प्रकार संसार का सबसे बड़ा सत्य मृत्यु है। आज हिन्दुत्‍व पर आधारित श्रीमती का‍ंति शुक्ला भोपाल द्वारा संस्थापित, श्रीमती रेनुका सिंह के सरंक्षण श्रीमती पूजा सिंह के प्रकाशन और मेरे संपादन में गहमर से प्रकाशित धर्मक्षेत्र का शुभारंभ 11 बज 11 से 11:49 मिनट के बीच आनलाइन होना था। कल दिनांक 10 अक्टूबर को लगभग 11 बजे पत्रिका की थीम की खरीद हुई और शाम तक उसके डिजाइन पर ही निर्णय नहीं कर पाया। रात 10 बजे से सारी रात बैठ कर उसे डिजाइन किया, लिखा, यह क्रम 11 अक्टूबर को सुबह 10:55 तक चला।

11 बजे मंदिर पहुँचना था, तुरंत नहा धोकर वाइफ के स्कूल पहुँचा वहॉं से उनको लेकर मंदिर पहुँचते पहुँचते 11: 20 हो गया। वहां पहुंच कर देखा तो इतनी भीड़ की दोनो गेट जाम। मंदिर के ऊपर पहुँच पाना असंभव सा लग रहा था। तभी गोपाल राम गहमरी सेवा संस्थान के अध्यक्ष मृतुंजय सिंह का फोन आया कहॉं हो, हम मंदिर के आफिस में बैठे हैं। हम और पत्नी सीधे आफिस में पहुँचे। वहॉं लैपटाप पर वेबसाइट खोलने लगे मगर सर्वर जाम बता कर नहीं खुला। हम तीनो लैपटाप वही छोड़ कर मोबाइल द्वारा ही मंहत जी से शुरू कराने के उद्वेश्य से अन्दर के रास्ते मंदिर परिसर में पहुँचे। ऊपर पहुँचने पर पता चला कि अभी अभी मंहत जी नीचे गये है, उनका पता ही नहीं चला। इधर बेवसाइट मोबाइल पर भी नहीं खुल रही थी। बैक करने पर पुराना पेज जो पहले बना हुआ था कम सून का वही दिखने लगा। मैने सोचा चलो अब दर्शन करके वापस चला जाये, लांच इसी को मान लेगें। मन की तसल्ली के लिए। मृतुंजय चाचा मंदिर गर्भ गृह में निकलने वाले रास्ते से घुस गये, हम और पत्नी नहीं घुस पाये। समय तब तक 11:40 हो गया।

तभी एक पुलिस का आदमी आया और वह निकास द्वार से अंदर जाने लगा और वह हमें पहचान गया, मैं उसी तरह मोबाइल में कम सून पेज आन किये मंदिर में प्रवेश कर गया। उसके बाद जो हुआ उसकी कल्पना भी नहीं किया जा सकता, ज्यों मैं मंदिर में घुस कर मॉं की प्रतिमा के पास पहुँचा मेरी तैयार वेबसाइट पर जो कामाख्या मॉं का फोटो लगा था, वह ऐसे खुलने लगा जैसे कोई पर्दा ऊपर से नीचे सरक रहा हो, मैं अचंभित रह गया, पूरी बवेबसाइट खुल गई। मैं भीड़ में खड़ा होकर मॉं के चरणपादुका से मोबाइल को स्पर्श कराया, मौजूद पंडित जी को भीड़ के बावजूद सब बताया, चूकि वह मुझे पहचानते और मानते दोनो थे इस लिए वह भीड़ की परवाह किये बिना मेरी बात सुने, और कहॉं मॉं की इच्‍छा। उन्होंने तिलक कर माला दिया, मोबाइल को लेकर मॉं के चरणों से स्पंर्श कराया, प्रसाद दिया और हम बाहर गये, समय देखा तो 11:49 अभी नहीं हुआ था।

जिस पत्रिका का शुभारंभ मैं मंहत जी के हाथो कराना चाह था, लोगो को बुलाया था, उस पत्रिका का उद्वाघाटन तो स्वंय मॉं कामाख्या ने अपने गर्भगृह में खुद कर दिया। मैं अभी तक इस घटना पर विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ।

*अखंड गहमरी*

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