धर्मक्षेत्र – संपादक अखंड प्रताप सिंह
मागधीय संस्कृति और सभ्यता का उद्भव और विस्तार का बोध कराता है नवादा जिले की पहाड़ियां और विकसित क्षेत्र । जलवायु परिवर्तन के साथ यहां का धरातल उच्च पाषाण युग 12020 वर्ष पूर्व आर्य एवं श्याम वर्ण का विभिन्न क्षेत्रों में सौर धर्म , शाक्त धर्म, शैव धर्म तथा वैष्णव धर्म के विभिन्न धर्मावलंबियों ने भिन्न भिन्न स्थानों पर अमिट छाप छोडा है। पुराणों और वेदों तथा इतिहास के पन्नों में महत्वपूर्ण संलेख है। आदि काल में मगध में देव, दैत्य, दानव, भल्ल, वसु, सिद्ध मरुद गण, पिशाच, यक्ष, नाग, मानव, किरात ,आदि का निवास था। देव संस्कृति के पोषक देव, गंधर्व, यक्ष, मानव और दैत्य संस्कृति का पोषक दैत्य, दानव, पिशाच राक्षस थे। पुरातन काल में 19 जातियां थी और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्ण को मग, मागध, मानष तथा मंदग कहा जाता था। राजा पृथु ने ब्रहमेष्टी यज्ञ से उत्पन्न मागध ने मगध साम्राज्य की नींव डाली और गया में अपनी राजाधनी बनाया था। बाद में राजा वसु ने मगध का रजाधानी राजगीर बना कर प्रजा और अपने क्षेत्र का विकास किया। 6 ठे मन्वन्तर में चाक्षुस मनु की पत्नी वैराज प्रजापति की पुत्री नडवला के गर्भ से 10 पुत्रों में कुत्स ने अपनी माता नडवला के नाम पर नगर बसाया जिसे नौआ वाद आधुनिक काल में नवादा के नाम से ख्याति प्राप्त है। राजा कुत्स ने कुत्स नगर की स्थापना की जिसे कौवाकोल के नाम से जाना जाता है। नवादा जिले के 12 विभिन्न पहाड़ियों पर भिन्न भिन्न राजाओं द्वारा स्थापित धरोहर है। धुर्वा शाही पर्वत 2202 फीट ऊंचाई, महावर पर्वत 1832 फीट ऊंचाई, मुरगरा पर्वत 1340 फीट, शताघरवा पर्वत 1145 फीट, बाजारी पर्वत 1359 फीट, लोहरोवा पहाड़ी 114 फीट,सोंगा पहाड़ी 1000 फीट, हरला पहाड़ी 1033 फीट, थारी पहाड़ी 1189 फीट, गीधा पहाड़ी 938 फीट, चरकही पहाड़ी 1010 फीट, श्रृंगी पहाड़ी 1850 फीट , इको हिल 20 फीट ऊंचाई और 20 वर्गफिट क्षेत्र में फैला है का पत्थर मानवीय आवाज प्रदर्शित करता है। माहवर पर्वत की 1832 फीट ऊंचाई का ककोलत श्रंखला के 160 फीट की ऊंचाई से ठंडे पानी का जलप्रपात होते है। लोमष पहाड़ी की उचाई 250 फीट ऊंची है वहीं मछेंद्र झरना , पचम्बा पहाड़ी बसौनी, चटकरी, डूबौर, सपही, और सिगार भूगर्भ में महत्वपूर्ण लौहयुक्त खनिज फैला है।
951 वर्गमील क्षेत्र में फैला नवादा जिला का दर्जा 26 जनवरी 1973 ई. प्राप्त हुआ। इसके पूर्व 1845 ई.में अनुमंडल की स्थापना हुई थी। 1911से 1918 ई. में नवादा राजस्व थाना में 663 ग्राम पर हिसुआ, वारसलीगंज, गोविंदपुर थाने, पकरी बरावां राजस्व थाना क्षेत्र में 141 गांव में पकरी वरावां ,कौआ कोल तथा रजौली राजस्व थाने के 295 गावं में रजौली थाने को मिला कर नवादा अनुमंडल की स्थापना हुई है। जिले में जर्रा, नरहट, पचरुखी, रोह, समाई परगाने थे। 1808696 अवादी वाले 2492 वर्ग किलो मीटर क्षेत्रफल में फैला नवादा जिले में 1099 गावों, 14 प्रखंड,187 पंचायत तथा 5 विधान सभा क्षेत्र,159 मध्य विद्यालय,749 प्राथमिक 60 उच्च एवं 9 महाविद्यालय तथा मैसकौर और नारहट पठारी युक्त क्षेत्र है। नवादा के उतर नालंदा, दक्षिण में कोडरमा झारखंड, पूरब में शेखपुरा तथा पश्चिम में गया जिले की सीमाओं से घिरा है।मागधीय परंपरा का नवादा जिले के विभिन्न क्षेत्रों में विरासत में विखरी पड़ी है। अपसंड , अपसढ़ में सेन वांशीय राजा आदित्य सेन द्वारा स्थापित भगवान् वराह की मूर्ति एवं उनकी माता श्रीमती पार्वती ने अपसढ से 03 कि मी की दूरी पर भगवान् विष्णु की मूर्ति तथा मंदिर और धार्मिक विश्वविद्यालय की स्थापना दरियापुर पार्वती पर्वत पर एवं अपसढ़ में तलाव का निर्माण एवं गुप्त वंश के राजा हर्ष गुप्त द्वारा कई मंदिर का निर्माण कराया गया था। यहां गुप्त वंश के राजाओं में कृष्ण गुप्त, हर्ष गुप्त, जिविल गुप्त, कुमार गुप्त, दामोदर गुप्त, महासेन गुप्त तथा माधव गुप्त ने अपसढ़ को आध्यात्मिक केंद्र स्थापित किया था। इसकी चर्चा जेनरल कनिंघम ने 1850 ई. में अपने भ्रमण के बाद 1863 ई. में चर्चा अपनी पुस्तक जनियललेजी आफ द लेटर गुप्तास में की है। चीनी यात्री हवेंसंग ने भगवान् बुद्ध ने पर्वत को पार्वती का घर में रहने और अवलोकितेश्वर की मूर्ति तथा मंदिर की आराधना की एवं मठ में विश्राम करने की व्याख्यान किया है। हर्ष पर्वत पर कश्यप ऋषि का आश्रम था। इसकी चर्चा फा हियान , हवेंसांग एवं डॉ स्टेइन ने हर्ष पर्वत को कुक्कुतापदगिरी कहा है। यहां कश्यप ऋषि का निर्वाण भगवान् बुद्ध के चार दिवसीय आवासीय रहने के दौरान हुआ था। राजा हर्ष कोल ने स्तूप एवं सोमनाथ मंदिर का निर्माण तथा भगवान् शिवलिंग की स्थापना की। इसकी चर्चा एम ए स्टेइन ने इंडियन अंटिक्युरी पुस्तक में की है।
कुर्किहार में 10 वीं सदी बोद्धिसत्व का प्रमुख केंद्र स्थापित था। यहां की मूर्तियां ग्रीको बुद्धिस्ट कला जिसे गांधार शैली में स्थापित है। भगवती मंदिर एवं भगवान् बुद्ध का चिन्तन आध्यात्मिक स्थल है। त्रिलोकीनाथ मंदिर प्रसिद्ध है। लोमष ऋषि पर्वत की समुद्रतल से 250 फीट ऊंचाई है। यह स्थल लोमष ऋषि का आध्यात्मिक स्थल रजौली से 18 मील की दूरी पर स्थित है। रजौली प्रखंड के क्षेत्रों में सप्त ऋषियों के नाम पर्वत है। अकबरपुर से 8 किलोमीटर उत्तर नानक पंथ मठ , है और लोमष गिरि , दुर्वासा गिरि समुद्रतल से 2202 फीट की ऊंचाई है साथ ही श्रृंगी ऋषि के नाम से समर्पित श्रृंगीगिरी है। बौरी में गौ पलक वीर लोरिक का जन्म स्थल है। क्षेत्र में लोरीक के नाम पर लोरिकायन गीत श्रद्धा से गाते है। नवादा थाने के सोभ में एक मुखी शिव लिंग, माता पार्वती और तीन मंदिर सौभ नदी के किनारे स्थापित है। यह स्थल 300 वर्ष पूर्व शैव धर्म का स्थल था। वारसलीगंज और रजौली में यूनियन बोर्ड का गठन 1926 ई. में किया गया था। कोवाकोल प्रखंड का क्षेत्र पुरातात्विक एवं प्राचीन कोल संस्कृति से भरा पड़ा है। कौआकोल प्रखंड का क्षेत्र 301 वर्गकिलो मीटर क्षेत्र फल फैला तथा समुद्रतल से 305 फीट ऊंचाई पर बसा 48 गावों में 2011 के जनगणना के अनुसार 143439 आवादी में 72416 पुरुष और 71023 महिला निवास करते है। प्राचीन काल में कौआकोल को काम्यक वन कहा जाता था। 1860 ई. में प्रथम सेटलमेंट मिस्टर रीडे ने 52 गावों को मिला कौआकोल महल की स्थापना की और घटवाली टेनुरे अर्थात् विकास की राह बनाया था।श्रृंगी ऋषि गिरी में निर्मित गुफा 16 फीट लंबाई ,11 फीट चौड़ाई,8 फीट ऊंचाई युक्त गोलनुमा गुफा है जिसे सीतामढ़ी गुफा के नाम से जानते हैं। इक्ष्वाकु वंश के राजकुमारी को कुष्ठ हो जाने के कारण गुफा में रहने के बाद गुफा के मुख्य द्वार पत्थर के चट्टानों से बंद कर ली थी और सूर्य आराधना में जुट गई थी तादुपरांत काशी राज के राजकुमार ने अपनी कुष्ठ निवारण के लिए पत्थर की चट्टानों को हटाने के बाद गुफा में प्रवेश किया था।
गुफा में पड़ी कुष्ठ रोगी से युक्त राजकुमारी और राजकुमार से संपर्क होने के बाद दोनों मिल कर तलाव में डुबकी लगाई। तलाव में डुबकी लगाने के बाद राजकुमारी और राजकुमार को कुष्ठ से मुक्ति मिल गई और दोनों ने विवाह कर रहने लगे। इन्हीं से कोल वंश की उत्पति हुई। ब्रह्मवैवर्त पुराण , पद्म पुराण, हरिवंश पुराण, बौद्ध ग्रंथों में कोल को कोली, कोल्ली, कोलिय, कोल, नाग, नायक कहा गया है। राजा कोल ने नगर का निर्माण कौआकोल के रूप में किया था। कोल का अंतिम शासक हर्ष कोल और पवन, पल्लव, केली, सर्प और सागर से युद्ध हुआ लेकिन वशिष्ठ ऋषि ने कोल वंश को पवित्र किया था। कोल वंश के लेट पुत्र और तिवर पुत्री हुई। त्रेता युग में जनकनंदिनी सीता अपने पुत्र लव और कुश अपने सैनिकों के साथ रही थी और गुफा में रहने के कारण गुफा का नाम सीतामढ़ी के नाम से विख्यात है। कौआकोल से 4.5 कि मी पश्चिम मछेंद्र जलप्रपात है। यह स्थल ऋषि दत्तात्रेय के शिष्य योग के ज्ञाता मछेंद्र ने नाथ संप्रदाय के संस्थापक थे । इन्होंने 8 वीं सदी में तंत्र योग सिद्ध का ज्ञान गोरखनाथ को को दिया था और योग दर्शन का रूप ले कर गोरखनाथ सिद्ध हुए। वसौनि, बेलम, चटकारी, डुबौर, सपही और सिंगार पहाड़ी लौहायुक्त पचम्बा पहाड़ी से ख्याति प्राप्त है जहां लौह अयस्क भरपूर मात्रा में है। सुंग पहाड़ का प्राचीन नाम श्रृंगीगीरी में कोहवरावा पहाड़ी में जोगिया मदन गुफा हैं जहां सतयुग में इक्ष्वाकु वंश की राज कुमारी और काशी के राजकुमार के साथ समागम हुआ था। बाद में कोल राजा ने गुफा का कोहवर गृह में चित्रकारी का रूप दे कर शादी में कोहबर संस्कृति का रूप दिया है। आज भी वर और कन्या के लिए चित्रकारी कर मागधिय संस्कृति प्रकट है। यहां मनिक संप्रदाय का प्रारंभिक क्षेत्र है।गुनिया जी स्थल में भगवान् महावीर के शिष्य गौतम स्वामी का जन्म स्थल और कर्मभूमि है। द्वापर युग की हड़िया सूर्य मंदिर एवं मूर्ति स्थापित है। सोखोदेवरा में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 1942 की क्रांति की शुरुआत और 1952 में भूदान आंदोलन का प्रारंभ तथा सर्वोदय आश्रम की स्थापना की थी। काम्यक वन में दुर्वासा ऋषि के नाम पर धूर्वाशाही पर्वत, दूर्वा पर्वत समुद्रतल से 2202 की उच़ाई पर है। यहां के त्रेता युग का राजा निगस ने अपने घमंड के कारण ऋषियों एवं जनता त्राहिमाम हों गए थे। दुर्वासा ऋषि के शाप से सर्प योनि में दुर्वापर्वत राजा नीगास विचरने लगे। दुर्वा पर्वत की श्रंखला ककोलत पर रह कर सर्प योनि से मुक्ति के लिए दुर्वासा ऋषि से प्रार्थना की जिससे जल प्रपात का रूप धारण कर आम लोगों की शीतलता प्रदान करने लगा। फलत: ककोलत जलप्रपात के नाम से विख्यात है। इस जलप्रपात में स्नान एवं भगवान् शिव तथा निगास की उपासना से सर्प योनि से मुक्ति और सर्प दंस से छुटकारा मिलता है ।
द्वापर युग में पांडवो ने राजा कोल को सर्प योनि से मुक्ति दिलाई। ककोलत जल प्रपात 160 फिट की उच्चाई से भूमि पर गिरता है। यह जल प्रपात का जल मीठा और काफी शीतल है। बिहार का ककोलत जलप्रपात ठंढा युक्त और शीतल है वहीं राजगीर का जल गर्म के लिए प्रसिद्ध है। बोलता पहाड़ी जिसे इको हिल कौआकोल थाने से 500 गज की दूरी पर अवस्थित है।20 वर्गाफिट में फैला पहाड़ी के पत्थर से पत्थर टकराने पर इंसान की आवाज निकलती है। यह बोलता पहाड़ी प्रसिद्ध है । शुंगा पहाड़ी की तलहटी रूपे में दैत्य राज शुंभ को बध माता शुभंकारी ने की थी जिसे माता चामुंडा के रूप में प्रसिद्ध है । रूपमयी चामुंडा की स्थापना शुंग वंश के राजा ने मूर्ति चामुंडा देवी की मूर्ति तथा मंदिर निर्माण कराया था । प्राचीन मंदिर प्राकृतिक आपदा के कारण समाप्त हो गई थी परन्तु ग्रामीणों के सहयोग से मदिर का निर्माण हुआ। यह स्थल मौर्य, गुप्त, शुंग, सेन काल में प्रसिद्ध था।एक वर्गकिमि में फैले आंति स्थित विजयनगर पातालपुरी का 20 फिट गहराई में 16 सीढ़ियों के माध्यम से स्थावर पारद शिवलिंग शांकरी नदी के किनारे अथर्ववेद के रचयिता ऋषि दधीचि के पुत्र एवं कर्दम ऋषि की पुत्री रुचिंता के पति अथर्वा ऋषि द्वारा चाक्षुष मन्वंतर में स्थापित है । वैवश्वत मन्वन्तर से संबत्सर तक आती शैव धर्म , वैष्णव धर्म सौर धर्म एवं शाक्त धर्म का केंद्र था । कुमार गुप्त एवं स्कन्द गुप्त काल 4 थीं शताब्दी में पातालपुरी विकसित विजयनगर के नाम से ख्याति अर्जित की थी । यहां पर एक मुखी शिवलिंग , भगवान बुद्ध , विष्णु , शिवपार्वती विहार एवं अनेक मूर्तियां है । पातालपुरी मंदिर के समीप स्कन्दगुप्त काल का गढ़ है । राजा विजयपाल , अनंत सेन का शासन , शुंग काल , गुप्त काल , सेन केयाल एवं पल काल की मूर्तियां है । हर्षवर्द्धन काल की मूर्तियां एवं धरोहर का उल्लेख ह्वेनसांग ने की है । मढ़ई धाम में स्थित साम्प्रदायिक सद्भाव और सौहार्द का स्थल सूफी संत का मजार 1904 एवं समाधि 1960 में स्थित आध्यात्मिक है । भारतीय विरासत संगठन द्वारा नवादा जिले के विभिन्न धरोहरों का परिभ्रमण किया गया है ।
सतेन्द्र कुमार पाठक