पुराने समय में जब आधुनिक तकनीकों का प्रचलन नहीं था, उस समय मौसम आधारित भविष्यवाणियां सटीक होती थीं, जो अनुभवी लोगों द्वारा समय-समय पर की जाती थीं। ऐसे ही अनुभवी कवियों में माने जाते हैं, अकबर के समय के महाकवि घाघ।
इनकी जन्मभूमि कन्नौज के पास चौधरी सराय नामक ग्राम बताई जाती है। कहा जाता है अकबर ने प्रसन्न होकर इन्हें सराय घाघ बसाने की आज्ञा दी थी, जो कन्नौज से एक मील दक्षिण स्थित है।
घाघ एक अच्छे कृषि पंडित और व्यावहारिक अनुभवी पुरुष थे। उनका नाम विशेषतर उत्तरी भारत के कृषकों के अधरों पर रहता है। चाहे बैल खरीदना हो या खेत जोतना, बीज बोना हो अथवा फसल काटना, घाघ की कहावतें उनका पथ प्रदर्शन करती हैं।
ये कहावतें मौखिक रूप में भारत भर में प्रचलित हैं। हरियाणा में इस बार मानसून बहुत कम रहा है। पुराने समय में इन सब बातों का पहले ही अनुमान लगा िलया करते थे और उसी के हिसाब से कृषक व अन्य लोग अपनी दिनचर्या तय करते थे।
आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं कहावतें
कृषि, जनजीवन, मौसम पर आधारित इनकी कहावतें न केवल उस समय प्रासंगिक थीं, बल्कि आज भी उनका उतना ही महत्व है।
महान किसान कवि घाघ की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथ-प्रदर्शन करती आई हैं। बिहार व उत्तरप्रदेश के गांवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहां वैज्ञानिकों के मौसम के अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीण आज भी यह मानते हैं कि घाघ की कहावतें लगभग सत्य साबित होती हैं। घाघ की कुछ कहावतें इस प्रकार हैं।
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी बिन बरसे ना जाय।।
शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं तो ..
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
भादों की छठ चांदनी जो अनुराधा होय।
ऊबड़-खाबड़ बोय दे अन्न घनेरा होय।।
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
अकाल और सुकाल
सावन सुक्ला सप्तमी जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै नाहीं समौ सुकाल।।
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा, न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
असुनी नलिया अन्त विनासै।
गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।
कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी
यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा या रेवती नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी, भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
वर्षा-रोहिनी बरसै मृग तपै कुछ कुछअद्रा जाय।
कहै घाघ सुने घाघिनी स्वान भात नहीं खाय।।
यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
जब बरखा चित्रा में होय।
सगरी खेती जावै खोय।।
चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्रायः सारी खेती नष्ट कर देती है।
जो कहुं मग्घा बरसै जल।
सब नाजों में होगा फल।।
मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं।
जब बरसेगा उत्तरा।नाज न खावै कुत्तरा।।
यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।
पैदावार- रोहिनी जो बरसै नहीं बरसे जेठा मूर। एक बूंद स्वाती पड़ै लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न; जौ, गेहूं और चना अच्छा होगा।
जो किसान आद्रा में धान बोता है…
जोत–
गहिर न जोतै बोवै धान। सो घर कोठिला भरै किसान।।
खेत गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
गेहूं बाहें। धान बिदाहें।।
गेहूं की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने; धान का बीज बोने के अगले दिन जोतवा देने से यदि धान के पौधों की रोपाई की जाती है तो विदाहने का काम नहीं करते, यह काम तभी किया जाता है जब आप खेत में सीधे धान का बीज बोते हैं।
गेहूं मटर सरसी। औ जौ कुरसी।।
गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
बोवाई-कन्या धान मीनै जौ।
जहां चाहै तहंवै लौ।।
कन्या की संक्रान्ति होने पर धान; कुमारी और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए।
आद्रा में जौ बोवै साठी। दुरूखै मारि निकारै लाठी।।
जो किसान आद्रा में धान बोता है, वह दुरूख को लाठी मारकर भगा देता है।
आद्रा बरसे पुनर्वसु जाय दीन अन्न कोऊ न खाय..
आद्रा बरसे पुनर्वसु जाय दीन अन्न कोऊ न खाय।।
यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा।
आस-पास रबी बीच में खरीफ।
नोन मिर्च डाल के खा गया हरीफ।।
खरीफ की फसल के बीच में रबी की फसल अच्छी नहीं होती।
उपलब्ध कहावतों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि घाघ ने भारतीय कृषि को व्यावहारिक दृष्टि प्रदान की। उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी और उनमें नेतृत्व की क्षमता भी थी। उनके कृषि संबंधी ज्ञान से आज भी अनेकानेक किसान लाभ उठाते हैं।
1- रहै निरोगी जो कम खायबिगरे न काम जो गम खाय
2-प्रातः काल खटिया ते उठि के पियइ तुरते पानीकबहूँ घर में वैद न अइहैं बात घाघ के जानी
3-मार के टरि रहूखाइ के परि रहू
4-चींटी संचय तीतर खायपापी को धन पर ले जाय
*सौजन्य से अमर उजाला*