आखिर क्यों नहीं खुलती साहित्यकारोें की जुबान मुस्लिम अत्याचार पर
बस हिन्दू वाटस्एप समूह बनाकर ही निकलेगी भड़ास, हाथ क्यों कॉंप रहे हैं खुलेआम लिखने में
मुस्लिम तुष्टिकरण नीति का समर्थक बिना नहीं चलेगी साहित्यकारिता की दुकान
कौन कहता है कि साहित्यकार मुस्लिम तुष्टिकरण नीति का समर्थक नहीं है, है। कौन कहता है कि हिन्दूओं के मरने और सतानत के मटियामेट होने की बात पर उसे फर्क पड़ता है। हिन्दू और सनातन जाये चूल्हे भाड़ में साहित्यकार और कवियों को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसकी लेखनी चल ही नही सकती । आज के साहित्यकार और कवि को तो फर्क पड़ता है मुल्लों के ऊपर तथाकथित अत्याचार से, उसके त्यौहार पर बधाई देने दें।
मेरी बात पर भले आज के साहित्यकारोंं एवं कवियों का चेहरा लाल हो जाये लेकिन बात बिल्कुल है 100 प्रतिशत है। टमाटर, सीमा, प्याज, मोदी, राहुल, और न जाने क्या क्या पर रील बनेगी, व्यंग्य होगें, कविता गढी जायेगी, लेकिन मेवात जैसी घटना पर खुद कर मुस्लिमों को कटघरे में खड़ा कोई नहीं करेगा। आखिर सवाल मुस्लिम तुष्टीकरण नीति का भी तो है। मेवात में मुल्लों द्वारा नीचता की हद, क्रूरता की हद पा कर दिया गया लेकिन हमारे दरबारी और मुल्ला प्रेमी कवियों व साहित्यकारोंं की कलम एक लाइन नहीं चली। उदाहरण देखना है तो देख ले जाकर हर साहित्यकारों के वाल पर जो टमाटर, सीमा, मोदी, राहुल जैसे अन्य बातोंं पर पर तो खूद कूद कूद कर लिखे है अपनी वालो पर लेकिन 31 जुलाई को हुए मेवात पर उनको साफ सूघं गया है। उनकी कलम टूट गई है।
यही नहीं यदि कोई पोस्ट लिख दो तो उसको पढ़ना, उस पर बातें करना तो बहुत दूर की बात है उस पर से साहित्कार हमारे ऐसे भागते हैं जैसे पोस्ट नहीं कोई भूत देख लिया हो। जय हो हमारे कवि साहित्यकार महोदय , यदि आपने हिन्दूओं का पक्ष लिया तो मुल्लों के सम्मेलनों में जनान जनाब कैसे कहे जायेेगेंं, कैसे आपकी कविताइ की रोटी चलेगी। वाह रे साहित्यकार केवल बंंद वाटस्एप समूहों में हिन्दूत्व पर कूदोंगे, जहॉं एक भी मुल्ला नहीं होगा वहॉं केवल हिन्दूत्व और यह होना चाहिए वह होना चाहिए करोगेंं। अरे हाथ और मुहँ में दही न जमी हो तो अरे साहबान दरबारी राग छोड़ीये, सनातन की तरफ आईये, जमीर यदि जिन्दा है तो चलीये साथ विरोध करिय कि धरती से आकाश तक हिल जाये मुल्लों और मुल्लों के समर्थन में खड़े होने वालो की चूले।
नहीं तो फिर
चल छईया छईया छईया छईया छईया
चल छईया छईया छईया छईया छईया
अखंड गहमरी