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निजामुद्वीन रेलवे स्‍टेशन का बदला जाये नाम -अखंड सिंह गहमरी

हिंदू तो न जाने किस मिट्टी का बना है, वह सबको पूजता है वह तो अफगानी लुटेर के पुत्र चाँद मिया को घर में बैठाता हो तो अजमेर में.हिन्दुओं महिलाओं के साथ अत्याचार करने वाले को ख्वाजा कह कर चादर चढ़ाता है । मैं यह बात आज इस लिए कह रहा हूँ कि आज जब मैने हिन्दुस्तान की राजधानी में बने एक प्रमुख रेलवे स्टेशन के नाम को निजामुद्दीन के नाम पर देखा तो सोच में पड़ गया कि इस स्टेशन का नाम निजामुद्दीन क्यों पड़ा? हजरत निजामुद्दीन का हिन्दुस्तान के विकास में ऐसा क्या-क्या योगदान है? जो हिन्दुस्तान.के दिल, हिन्दुस्तान की राजधानी में उनको जगह देनी पड़ गई। कौन- कौन से ऐसे तीर हजरत निजामुद्दीन ने हिन्दुस्तान में चलाये जिसको हिन्दुस्तान मूल निवासियों में कोई भी नहीं चलाया पाया? कौन सा ऐसा महत्वपूर्ण काम अरब के ये मूल निवासी ने कर दिया जिसके नाम को हिन्दुस्तान के सीने पर लिखना पड़ गया? यह सब सोचते हुए मैं गूगल बाबा के पास पहुँचा तो पता चला कि हजरत निजामुद्दीन जी चिश्ती घराने के चौथे संत थे। इस सूफी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की, कहा जाता है इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। जब इनकी जीवनी पढ़ी तो मुझे कुछ ऐसा नहीं दिखा जिस पर अतरिक्त गर्व किया जाये। इनका एक काम ही.ही दिखा जिसमें उन्होंने अपना एक “खंकाह” बनाया, जहाँ पर विभिन्न समुदाय के लोगों को खाना खिलाया जाता था, “खंकाह” एक ऐसी जगह बन गयी थी जहाँ सभी तरह के लोग चाहे अमीर हों या गरीब, की भीड़ जमा रहती थी।।
अब ऐसे हजारों खंकाह तो हमारे हिन्दू धर्म के बड़े संत-महंत-बाबा के आश्रम को तो छोड़ीये गाँव.क्षेत्र में रहने वाले संतो-बाबा -महंतो के छोटे से निवास स्थानों पर मिल जायेगें जहाँ 10-20 लोग रोज. आहार लेते हैं। इसमें कौन सी ऐसी बात हो गई जो निजामुद्दीन के नाम पर हिन्दुस्तान के दिल में जगह देनी पड़ी, हिन्दुस्तान की जम़ीन को अरब से आये प्रवासीयों के नाम पर करना पड़ा। बहुत जगह तलाशा मगर इनके विषय में अतरिक्त कुछ नहीं मिला।
तब कहना पड़ा कि बस इस रेलवे का स्टेशन का नाम हजरत निजामुद्दीन पर होना.केवल मुस्लिम तुष्टीकरण को छोड़ कर कुछ नहीं है क्योंकि भारत में बहुत से संत हैं जो गुमनाम हैं, उनके नाम पर कुछ नही है। मैं भारत सरकार एवं रेल मंत्रालय से माँग करता हूँ कि इस रेलवे स्टेशन का नाम हजरत निजामुद्दीन से बदल कर किसी हिंदू संत-मंहत-या दिल्ली के लिए जान देने या दिशा देने वाले के नाम पर रखा जाये.या हिन्दुस्तान के इतने बड़े संविधान को तैयार करने वाली टीम के मुखिया डा. राजेन्द्र प्रसाद या संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष डा. भीमराव.अम्बेडकर के नाम पर रखा जाये, बिखरे हिन्दुस्तान को एक करने वाले सरदार वल्लभभाई. पटेल के् नाम पर रखा जाये जिन्होनें. हिन्दुस्तान को बहुत कुछ दिया। जिन्होंने हिन्दुस्तान को ऊँचाई प्रदान की, जिन्होनें हिन्दुस्तान को.एक रास्ता दिखाया उसकी पहचान बनाई। वैसे भी तो दिल्ली मुस्लमानों के नाम की सड़को और भवनों से अटी-पड़ी है। लगता ही नहीं कि हम हिंदुस्तान की राजधानी में हैं या अरब व पाकिस्तान की।

अखंड गहमरी

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