स्नेही स्वजन,
आज इस पोस्ट को मैं अखंड गहमरी बहुत ही व्यथित मन से लिख रहा हूँ। व्यथित मन से लिखने का तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं हैं कि मैं हार कर लिख रहा हूँ क्योंकि मैं देश के लिए मरने वालो में नहीं हूँ बल्कि मैं देश के लिए मार देने वालों में हूँ। आप मर गये तो क्या फायदा, मरना तो दुश्मन को चाहिए तब होगा फायदा।
आज मैं सोशलमीडिया पर देख रहा हूँ कि हर ऐरा-गैरा, नत्थू-खैरा, मुहँ उठाये सनातनी धर्म के सभ्यता-संस्कृति को कटघरे में खड़ा कर उस पर अपशब्द लिख रहा है। बात यही तक होती तो चल जाती लेकिन पानी सर से ऊपर उठ रहा है। अब सनातन धर्म के सभ्यता संस्कृति पर ही नहीं बल्कि त्यौहारो को, देवी-देवताओं के स्वरूप को, देवताओं व त्यौहारों की कथाओं ही नकारा जा रहा है। उनकी पूजा उनके महत्व को ही नकारा जा रहा है, अपशब्द कहे जा रहे है। दुर्गा सप्तशदी, दुर्गा, दशहरा, राम को नकारा जा रहा है।और यह करने वाले और उनका समर्थन करने वाले कोई गैर नहीं बल्कि हिंदू ही है, न जाने कैसी साहित्यकारिता है न जाने कैसी राजनीति है न जाने कैसा ज्ञान है कि अपने ही धर्म के विरोध में और वह भी ऐसा धर्म जिस पर आज का विज्ञान आधारित है बोल लिख कर शान महसूस कर रहे हैं। अति तो तब हो रही है जब उस पर प्रक्रिया देने वाले भी उसका समर्थन कर रहे हैं, विरोध में एक आवाज नही उठ रही है।
यह सब देख कर जो साहित्यकार शब्द मेरे नाम के साथ जुड़ गया है वह मुझे अब शूल की तरह चुभ रहा है। मुझे उस सैनिक की तरह बना दिया है जिसके हाथ में बंदूक तो है, गोली तो है लेकिन चलाने की अनुमति नहीं है, भले ही दुश्मन मार कर क्यों न निकल जाये। मैं ऐसे लोगो पर ” जैसे को तैसा’ के रूप में चलना चाहता हूँ लेकिन बस एक ही डर है कि जो अग्रज, मार्गदर्शक, अपना नाम मुझ नवप्रवेशी नादान के नाम के साथ विश्वास कर जोड़ लिये उनका नाम मत खराब हो जाये। मैं बोलना चाहता हूँ ”खग ही जाने खग की भाषा के रूप में’। मैं ऐसा प्रहार करना चाहता हूँ कि जिसमें अगली बार सनातन धर्म पर कलम चलाने से पहले उनकी कलम हजार बार सोचे, कलम खुद ही टूट जाये।मैने प्रयास किया कि सनातन धर्म पर बोलने वालो के सर पर सब मिल कर प्रहार करें लेकिन सबकी मजबूरीयों ने सबको चुप करा दिया जो मजबूरी से चुप नहीं हुए उनको या तो अपनो ने चुप करा दिया या गोली ने। चंद मुट्टी भर लोग सनातन धर्म पर राजनीति कर उल्टे सीधे बोल कर हमारे आने वाली पीढ़ीयों को बर्बाद कर रहे हैं और अखंड गहमरी चुपचाप साहित्यकारिता के नाम पर, शब्दो के चयन के नाम पर, अपनो की नाराजगी के नाम पर चुप रह जा रहा है।
अब समय आ गया है कि हमेंं सनातन धर्म व उसके देवी -देवताओं, उसके त्यौहारो, संस्कृति, सनातन कथाें पर अपशब्द कहने वाले दुष्टों के लिए, जैसे को तैसा बनाने का । अब हमेंं यह सब देख कर घुट-घुट कर मरना नहीं बल्कि ऐसे लोगो को ‘जैसे को तैसा की तरह जबाब देना होग। उनके एक एक पोस्ट पर स्वतंत्र रूप से लिखना शुरू करना होगा। हमेंं केवल साहित्यकार नहीं सनातन सेवक, सनातन योद्वा बनाना होगा।
अखंड सिंह गहमरी